संचालनालयाची स्थापना :
स्वातंत्र्यपूर्व काळात भाटघर धरण (निरा कालवा) व भंडारदरा धरण (प्रवरा नदीवर व संबंधित कालवे) यांच्या लाभक्षेत्रात पाणथळ व क्षारयुक्त जमिनींचे प्रमाण वाढले होते. त्यांची कारणे शोधण्यासाठी तसेच खराबा जमिनी कशा प्रकारे सुधारता येतील यासाठी विशेष अभ्यास करुन उपाययोजना करण्यासाठी विशेष पाटबंधारे विभाग हा इ.स.1916 मध्ये पुणे येथे स्थापन करण्यात आला. सर क्लॉड इंग्लीस हे या विभागाचे प्रथम कार्यकारी अभियंता म्हणून कार्यरत होते. सिंचन क्षेत्रात मोठ्या प्रमाणात वाढ होत गेल्याने व जल व्यवस्थापनाशी निगडित असलेले प्रश्न हाताळण्याच्या दृष्टीने सदरच्या विभागाचे रुपांतर इ.स. 1969 साली सध्याच्या पाटबंधारे संशोधन व विकास संचालनालयात करण्यात आले. असे कार्य करणारे आपले एकमेव राज्य आहे. दुसऱ्या सिंचन आयोगाने 1999 मध्ये शासनाला सादर केलेल्या खंड-1, प्रकरण दोनमध्ये या यंत्रणेची आवश्यकता नमूद केलेली आहे.
संचालनालयाकडून करण्यात येत असलेली विविध कामे :
- बाधित क्षेत्र निर्मूलन : क्षेत्रीय पाहणी, नियतकालीक निरिक्षणे घेणे खराबा क्षेत्र निश्चित करणे.
- चर योजना दुरुस्ती व देखभाल, नवीन चर योजनेसाठी सर्वेक्षण आणि बांधकाम.
- भूमीगत चर योजना.
- क्षेत्रीय पाहणी व मृद सर्वेक्षण : जलसंपदांतर्गत लाभक्षेत्राचे सिंचनपूर्व व सिंचनोत्तर मृद सर्वेक्षण.
- संशोधन अभ्यास: पाटबंधारे व्यवस्थापन, मृदा व्यवस्थापन, भूजल व्यवस्थापन याबाबतचे संशोधन अभ्यास. क्षेत्रीय (फिल्ड) व शोध निबंध (पेपरस्टडी) असे दोन प्रकारचे संशोधन अभ्यास.
- राज्य व राष्ट्रीय स्तरावरील प्रदर्शनांमध्ये जलसंपदा विभागाचे प्रतिनिधित्व व दूरदर्शनवरील कृषिदर्शन कार्यक्रमाचे समन्वयन.
- प्रधानमंत्री कृषी सिंचाई योजना अंतर्गत महाराष्ट्रातील मोठ्या व मध्यम प्रकल्पांचे समवर्ती मूल्यमापन अहवाल (Concurrent Evaluation Report) केंद्रीय जल आयोग, पुणे व नागपूर यांना सादर करणे.
- अराजपत्रित ब, क व ड कर्मचाऱ्यांसंबंधी परिमंडळीय कामकाज.
1. बाधित क्षेत्र निर्मूलन : क्षेत्रीय पाहणी, खराबा क्षेत्र निश्चित करणे :
पाटबंधारे संशोधन व विकास संचालनालयामार्फत महाराष्ट्र राज्यातील सर्व मोठ्या व निवडक मध्यम प्रकल्पांच्या लाभक्षेत्रातील पाणथळ व क्षारयुक्त क्षेत्राचे संनियंत्रण केले जाते तसेच कालव्यांच्या लाभक्षेत्रातील विहिरीच्या पाण्याच्या पातळीचे नियतकालिक निरीक्षणे घेण्याचे काम केले जाते.
1. नियतकालीक निरिक्षणे: प्रकल्पाच्या लाभक्षेत्रामध्ये असलेल्या विहीरींची मान्सुनोत्तर पाणी पातळी निरीक्षणे दरवर्षी नोव्हेंबर ते जानेवारी या कालावधीमध्ये घेण्यात येतात.फक्त लिप वर्षामध्ये मान्सुनोत्तर 2.0 मी. च्याआत जलपातळी आढळलेल्या विहीरींची निरीक्षणे पुन्हा मान्सुनपुर्व - मार्च ते मे या कालावधीमध्ये घेण्यात येतात.
पाणी पातळीनुसार पाणथळ क्षेत्र निश्चिती निकष-
विहिरीतील पाणी पातळी | विभाग / गट |
---|---|
0 ते 2.0 मी | धोकादायक क्षेत्र ( Danger Zone) |
2.01 ते 3.0 मी | इशारा जनक क्षेत्र ( Alarming Zone) |
3.01 मी. च्या वर | सुरक्षित क्षेत्र ( Safe Zone) |
ब) पाणथळ क्षेत्राची निश्चिती :
कालव्याच्या लाभक्षेत्रातील निरिक्षणांमध्ये आढळलेल्या भूजलपातळीनुसार पाणथळ क्षेत्र ठरवले जाते व या क्षेत्राची निश्चिती विहीर पाणीपातळी व ज्या ठिकाणी विहीरी नाहीत तेथे पाणथळ जागी Berma Pits द्वारे 24 तास भूजल पाणीपातळीचे निरीक्षणाद्वारे केली जाते. Berma Pits ची साईज 0.10 मी.व्यास व 2.4 मी. खोली इ्तकी घेण्यात येते.
पाणथळ क्षेत्राचा प्रकार | दर्शक |
---|---|
अंशत: पाणथळ क्षेत्र | बर्मा पीट मध्ये 24 तासात जमिनीपासून 2.00मी. च्या आत पाणी पातळी आढळते. |
पुर्णत: पाणथळ क्षेत्र | बर्मा पीट पुर्णत: भरून जमिनीवर पाणी साठलेले आढळून येते. |
क्षारपड क्षेत्राची निश्चिती-
यामध्ये क्षेत्रिय निरीक्षणाचे वेळी ऑगरचे सहाय्याने मातीचे नमूने घेऊन त्याची pH Value व EC Value चाचणी केली जाते व त्यानुसार क्षारयुक्त क्षेत्र निश्चित केले जाते.
क्षारयुक्त क्षेत्राचा प्रकार | E.C. value | pH value |
---|---|---|
क्षारमुक्त क्षेत्र | 0 ते 1 डेसी सीमेन्स / मी | Upto 8.5 |
अंशत: क्षारयुक्त क्षेत्र | 1 ते 3 डेसी सीमेन्स / मी | Above 8.5 |
पुर्णत: क्षारयुक्त क्षेत्र | 3 डेसी सीमेन्स / मी. पेक्षा अधिक | Above 8.5 |
2. चर योजना दुरुस्ती व देखभाल, नवीन चर योजनेसाठी सर्वेक्षण आणि बांधकाम:
पाट्बंधारे संशोधन विभाग, पुणे विभागांतर्गत सांगली व कोल्हापूर जिल्ह्यातील लाभक्षेत्रा बाहेरील 49 भूमिगत चर योजनांचे व दौंड तालुक्यातील 14 उघड्या चर योजनांचे असे एकुण 63 चर योजनांचे सर्वेक्षण पुर्ण झाले असून चर योजनांच्या मापदंड मंजूरीनंतर त्यांचे बांधकामाची कार्यवाही करण्याचे नियोजन करता येईल.
महाराष्ट्रातील बाधित क्षेत्र, पूर्ण झालेल्या चर योजना आणि सुधारलेले क्षेत्र :
नीरा, कृष्णा, प्रवरा, ऊर्ध्व पेनगंगा, घोड, तसेच खोल काळी माती असणाऱ्या जायकवाडी, उजनी, मांजरा अशा प्रकल्पांवर बाधित क्षेत्र आढळून आलेले आहे. जलनि:सारण योजनांमुळे खराबा क्षेत्रात होणारी सुधारणा ही चर योजनांची देखभाल, नैसर्गिक नाल्यांची निचरा शक्ती, मातीची खोली व निचरा शक्ती इत्यादी बाबींवर अवलंबून असते. सद्यस्थितीत राज्यातील बाधित क्षेत्र खालील प्रमाणे आहे.
प्रादेशिक विभाग | जिल्हा निहाय | कालव्यांचीसंख्या | निरीक्षणाखालील क्षेत्र (हे) ICA (Ha) | पाणथळ क्षेत्र (हे.) | क्षारपड क्षेत्र (हे.) | अदिच्छादित क्षेत्र (हे) | निव्वळ बाधित क्षेत्र (हे) |
---|---|---|---|---|---|---|---|
पुणे |
पुणे | 12 | 725404.00 |
2379.34 | 6122.04 | 00.00 | 8501.38 |
सातारा | 06 | 1484.30 | 1118.50 | 00.00 | 2602.80 | ||
सांगली | 04 | 2773.41 | 19.80 | 19.80 | 2773.41 | ||
सोलापूर | 03 | 290.85 | 3887.85 | 0.00 | 4178.70 | ||
कोल्हापूर | 03 | 677.56 | 0.00 | 0.00 | 677.56 | ||
एकूण | 28 | 7605.46 | 11148.49 | 19.80 | 18733.85 | ||
नाशिक | नाशिक | 09 | 378884.00 |
1.10 | 244.39 | 0.00 | 245.49 |
जळगाव | 03 | 0.00 | 55.03 | 0.00 | 55.03 | ||
अहमदनगर | 09 | 1315.10 | 1845.41 | 0.00 | 3160.51 | ||
धुळे | 03 | 0.00 | 2.46 | 0.00 | 2.46 | ||
IRD औरंगाबाद | 02 | 0.00 | 21.30 | 0.00 | 21.30 | ||
एकूण | 26 | 1316.20 | 2168.59 | 0.00 | 3484.79 | ||
औरंगाबाद | औरंगाबाद | 03 | 453472.00 |
0.00 | 71.05 | 0.00 | 71.05 |
जालना | 01 | 0.00 | 243.20 | 0.00 | 243.20 | ||
परभणी | 03 | 53.90 | 182.87 | 30.00 | 206.77 | ||
बीड | 04 | 0.00 | 505.16 | 0.00 | 505.16 | ||
हिंगोली | 02 | 66.30 | 51.25 | 5.75 | 111.80 | ||
नांदेड | 03 | 83.70 | 35.40 | 1.95 | 117.15 | ||
लातूर | 02 | 0.00 | 175.93 | 0.00 | 175.93 | ||
उस्मानाबाद | 01 | 0.00 | 36.67 | 0.00 | 36.67 | ||
एकूण | 19 | 203.90 | 1301.53 | 37.70 | 1467.73 | ||
अमरावती | अमरावती | 02 | 109060.00 |
3.75 | 0.00 | 0.00 | 3.75 |
अकोला | 02 | 3.90 | 3.87 | 0.00 | 7.77 | ||
बुलढाणा | 01 | 1.80 | 4.72 | 0.00 | 6.52 | ||
वाशिम | 01 | 3.18 | 0.83 | 0.00 | 4.01 | ||
यवतमाळ | 06 | 23.56 | 15.94 | 2.56 | 36.94 | ||
एकूण | 12 | 36.19 | 25.36 | 2.56 | 58.99 | ||
नागपूर | नागपूर | 03 | 48500.00 |
38.61 | 0.30 | 0.00 | 38.91 |
वर्धा | 03 | 20.50 | 4.40 | 2.10 | 22.80 | ||
एकूण | 06 | 59.11 | 4.70 | 2.10 | 61.71 | ||
एकूण | 93 | 1715320.00 | 9220.86 | 14648.37 | 62.16 | 23807.07 |
अदिच्छादित क्षेत्र (Overlapped Area ) म्हणजे असे क्षेत्र की जे पाणथळ व क्षारयुक्त असे दोन्हीही आहे.
निव्वळ बाधित क्षेत्र = (पाणथळ क्षेत्र) + (क्षारपड क्षेत्र) - (अदिच्छादित क्षेत्र))
वरीलप्रमाणे एकूण कालवे 93 आहेत व एकूण बाधित क्षेत्र 23807.07 हे. आहे.
प्रादेशिक विभाग | जिल्हा निहाय | पूर्ण झालेल्या चर योजना (संख्या) | संरक्षित क्षेत्र (हे) | अंदाजपत्रकीय बाधित क्षेत्र (हे) | बाधित क्षेत्र (हे) | सुधारलेले क्षेत्र (हे) |
---|---|---|---|---|---|---|
पुणे | पुणे | 201 | 47112.50 | 13647.50 | 4792.25 | 17086.02 |
सातारा | 86 | 15975.60 | 5383.82 | 2129.60 | ||
सांगली | 32 | 4966.77 | 2545.88 | 1258.88 | ||
सोलापूर | 101 | 20414.90 | 5040.10 | 1372.20 | ||
कोल्हापूर | 2 | 108.00 | 33.25 | 11.60 | ||
एकूण | 422 | 88577.77 | 26650.55 | 9564.53 | ||
नाशिक | नाशिक | 32 | 10279.92 | 3986.76 | 89.86 | 25855.87 |
जळगाव | 18 | 3707.01 | 1209.27 | 3.22 | ||
अहमदनगर | 191 | 72394.62 | 22620.52 | 1867.60 | ||
एकूण | 241 | 86381.55 | 27816.55 | 1960.68 | ||
औरंगाबाद | औरंगाबाद | 15 | 1310.80 | 161.38 | 7.05 | 8252.62 |
जालना | 72 | 8508.82 | 1054.91 | 80.40 | ||
बीड | 33 | 5247.04 | 1056.80 | 136.48 | ||
परभणी | 38 | 9361.01 | 1300.69 | 22.95 | ||
हिंगोली | 43 | 20680.30 | 3580.19 | 61.20 | ||
नांदेड | 23 | 12290.00 | 1257.21 | 39.35 | ||
लातूर | 05 | 434.20 | 169.74 | 25.45 | ||
उस्मानाबाद | 02 | 158.60 | 53.80 | 10.22 | ||
एकूण | 231 | 57990.77 | 8634.72 | 382.10 | ||
अमरावती | अकोला | 02 | 174.34 | 60.00 | 4.64 | 215.93 |
यवतमाळ | 07 | 537.17 | 164.21 | 3.64 | ||
एकूण | 09 | 711.51 | 224.21 | 8.28 | ||
एकूण | 903 | 233661.60 | 63326.03 | 11915.59 | 51410.44 |
वरीलप्रमाणे एकूण बाधित क्षेत्र 23807.07 हे. आहे. बाधित क्षेत्र निर्मूलनाकरिता संचालनालयाने 903 चर योजनापूर्णकेलेल्या आहेत. पूर्ण झालेल्या चर योजनांमुळे एकूण 51410.44 हेक्टर एवढे क्षेत्र सुधारलेले आहे.
3. भूमीगत चर योजना:
या पध्दतीमध्ये बाधित क्षेत्रातील शेतक-यांच्या पाणथळ जमिनीतून पाण्याचा निचरा करणेकरीता जमिनीखाली साधारणत: 1.25 मी. खोलीवर सच्छिद्र पाईपचे (Lateral) ग्रीड टाकण्यात येते व Collector आणि Main Drain द्वारे नजीकच्या नैसर्गिक नाल्यात/नदीत पाण्याचा निचरा करण्यात येतो.
सांगली जिल्हयातील 5 गावांच्या पथदर्शी भूमिगत चर योजनेस (Sub Surface Drainage Scheme) जलसंपदा विभागाकडील शासन निर्णय दि. 21/07/2020 चे पालन होईल या अटीच्या अधीन राहून शासन निर्णय क्र. सीडीए 2021/ प्र. क्र. 37/ 21/ लाक्षेवि (कामे), दि. 24/01/2022 नुसार रुपये 93.72 कोटीची प्रशासकीय मान्यता प्रदान करण्यात आली आहे.
4. मृद सर्वेक्षण : पाटबंधारे प्रकल्पांच्या लाभक्षेत्रातील सिंचनपूर्व व सिंचनोत्तर मृद सर्वेक्षण कामे :
पाटबंधारे विभागातील मोठे, मध्यम, लघु आणि उपसा सिंचन योजना अशा विविध प्रकल्पातील लाभक्षेत्रांचे मृद सर्वेक्षण काम केले जाते. प्रस्तावित प्रकल्पांचे सिंचनपूर्व व सिंचनोत्तर मृद सर्वेक्षण केल्यानंतर मृद सर्वेक्षण अहवाल कार्यालयीन उपयोगाकरिता प्रकाशित केले जातात. तसेच मृद सर्वेक्षण अहवालाचा उपयोग जलसंपदा विभागातील सिंचन विभागास प्रामुख्याने होतो.
मृद सर्वेक्षणांच्या विविध कामासाठी लाभक्षेत्रातील माती व पाणी यांच्या अनेक विविध गुणधर्माचा अभ्यास जमिनीचा उंचसखलपणा, जमिनीची जलनि:सारण क्षमता, मृदे मध्ये पाणी झिरपण्याची क्षमता, मृदेचे विविध गुणधर्म व प्रकार इत्यादि तांत्रिक व भौगोलिक बाबींचा विचार करुन सदर प्रकल्पांवर आधारीत मृद सर्वेक्षणाचे नकाशे ठराविक प्रमाणानुसार (standard scale) तयार केले जातात. त्याशिवाय प्रकल्प क्षेत्रातील पिक पध्दती, हवामान विषयक बाबी, सिंचनोत्तर होणारे संभाव्य दुष्परिणाम, पर्यावरण विषयक माहिती, सिंचनासाठीची पाण्याची पातळी व कालावधी, नैसर्गिक जलनि:सारण, वर्ग 1 ते 6 मध्ये जमिनीचे सिंचनासाठीचे वर्गीकरण इत्यादी बाबींचा सखोल विचार केला जातो. मृद सर्वेक्षण जलद, सखोल व अद्यावतीकरण या प्रकारात केले जाते.
5. संशोधन अभ्यास :
संचालनालयांतर्गत जल व्यवस्थापन व इतर निगडीत विषयांवर उपयोजीत (Applied) स्वरुपाचे संशोधन काम करण्यात येते. यामध्ये दोन प्रकारे संशोधन अभ्यास केले जातात.
(अ) शोध निबंध (पेपर स्टडी) : उपलब्ध माहितीच्या आधारे करण्यांत येणा-या संशोधन अभ्यासास शोधनिबंध (पेपर स्टडी) असे संबोधण्यात येते.
(ब) क्षेत्रीय अभ्यास : प्रत्यक्ष निरीक्षणातून माहिती उपलब्ध करुन त्यावर आधारित अभ्यासास क्षेत्रीय अभ्यास असे संबोधण्यात येते.
निगडित संशोधन कामे संचालनालयांतर्गत खालील विषयांशी करण्यात येतात.
- जल व्यवस्थापनाशी निगडित संशोधन अभ्यास : यामध्ये तुषार व ठिबक सिंचन पद्धतीचा प्रवाही सिंचन पद्धतीशी तौलनिक अभ्यास, बंदिस्त नलिका वितरण प्रणालीचा अभ्यास, जललेखा अहवालामुळे क्षेत्रिय स्तरावर पाटबंधारे प्रकल्पाच्या सिंचन व्यवस्थापनेमध्ये झालेला फरक व फ़ायदा याबाबतचा अभ्यास, सिंचन व्यवस्थेत बाष्पीभवनाने होणारा पाणीनाश यांचा अभ्यास, पिकांभोवती निरनिराळ्या वस्तुंचे आवरण घालून बाष्पीभवनामुळे होणारा पाणीनाश कमी करणे इ. बाबींचा समावेश आहे.
- मृद व्यवस्थापनाशी निगडित संशोधन अभ्यास : यामध्ये खोल काळ्या मातीतील निरनिराळ्या चर योजनांचा अभ्यास, मृद व जलसंधारणाच्या आधुनिक पद्धतींचा मृदेच्या भौतिक व रासायनिक गुणाधर्मांवर होणारा परिणाम अभ्यासणे इ. बाबींचा समावेश आहे.
- भूजलाचा अभ्यास : यामध्ये भूजल प्रदुषणाचा अभ्यास, पाझर तलावाच्या कार्यक्षमतेचा अभ्यास, कोकणातील जांभ्या खडकातील भूजलाचा अभ्यास, भूमिगत बंधा-याचा अभ्यास इत्यादीचा समावेश आहे.
- इतर अभ्यासामध्ये प्रधानमंत्री कृषी सिंचन योजनेतील प्रकल्पांचा मुल्यांकनाचा अभ्यास, पुनरुत्पादित विसर्गाचा अभ्यास, रासायनिक पदार्थाच्या सहाय्याने तलावातील पाण्याचे बाष्पीभवन नियंत्रित करण्याचा अभ्यास इ. बाबींचा समावेश होतो.
संचालनालयामार्फ़त करण्यात आलेल्या संशोधन अभ्यासांपैकी खालील दोन संशोधन अभ्यास सादर करण्यात येत आहेत.
- जायकवाडी प्रकल्पावरील निर्मित सिंचन क्षमता व प्रत्यक्षातील सिंचन क्षेत्र यातील तफ़ावत व त्याची कारणमिमांसा अभ्यासणे (ठिकाण :- जायकवाडी प्रकल्प). (शोध निबंध :- 2009-2010)
- कोकण प्रदेशातील सिंचन प्रकल्पांवर प्रकल्पिअय सिंचन क्षमता / पाणीवापर आणि प्रत्यक्षातील सिंचन क्षमता / पाणीवापर या मधील तफ़ावतीचा अभ्यास (पेपर स्टडी) सन 2011 – 2012.
6. सिंचन कक्ष सक्षमीकरण :
महाराष्ट्र शासन, जलसंपदा विभाग, शासन निर्णय क्रमांक - आढावा-2022/प्र.क्र.28/आ.(पुर्नरचना), दिनांक - 04 मे, 2022, या शासन निर्णयान्वये सिंचन व पाणी वापर संस्था सक्षमीकरण कक्ष निर्माण करण्यात आला असून सदर कक्षास खालील कामे सोपवण्यात आली आहेत.
पाणी वापर संस्था स्थापन करण्याचा प्रकल्पनिहाय बृहत आराखडा संबंधित क्षेत्रिय अधिका-यांकडून प्राप्त करुन घेणे व त्यानुसार अंमलबजावणीचे संनियंत्रण करणे.पाणी वापर संस्थांची माहिती संकलीत करणे .CADWM घटकातील Non Structural बाबींची अंमलबजावणी व संनियंत्रण.Project Implementation Unit (PIU) ची कामे प्रमुखाच्या आदेशानुसार पार पाडणे व त्याबाबत क्षेत्रीय कामांविषयी समन्वय साधणे.पाणी वापर संस्था सक्षमीकरणासाठी प्रशिक्षणाची गरज तपासून, त्यानुसार प्रशिक्षण कार्यक्रम तयार करणे.सहभागी सिंचन व्यवस्थापनाच्या अनुषंगाने शासनाच्या सूचनेनुसार कार्यवाही करणे.
7. क्षेत्रीय मुख्य अभियंता स्तरावरून महाराष्ट्रातील पाणी वापर संस्थांबाबत प्राप्त त्रैमासिक अहवालाचे संकलन करून शासनास सादर करणे :
राज्यातील पाणी वापर संस्थांच्या प्रगती अहवालाची माहिती संकलित करुन पाणी वापर संस्थेचा तिमाही प्रगती अहवाल शासनास नियमितपणे संचालनालयाकडून सादर केला जातो.
8. अराजपत्रित ब, क व ड कर्मचाऱ्यांसंबंधी परिमंडळीय कामकाज:
अराजपत्रित ब, क व ड कर्मचाऱ्यांसंबंधी ज्येष्ठता, बदली, पदोन्नती व अनुषंगिक न्यायालयीन प्रकरणे इत्यादी परिमंडळीय कामकाज देखील संचालनालयाकडून करण्यात येते.
9. प्राप्त पुरस्कारांची माहिती :
संचालनालयामार्फत प्रकाशित करण्यात येणा-या “महाराष्ट्र सिंचन विकास” या त्रैमासिकास राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2018 या पुरस्कार सोहळ्यात स्थानिक नियतकालिक या श्रेणीमध्ये प्रथम पुरस्कार प्राप्त झाला असून सदर पुरस्कार केंद्रीय जलसंधारण मंत्री मा. श्री. नितीन गडकरी यांच्या हस्ते प्रदान करण्यात आला.
संपर्क :
श्रीमती.वै. ग. नारकर,
अधीक्षक अभियंता व संचालक,
पाटबंधारे संशोधन व विकास संचालनालय,
8, मोलेदिना पथ, पुणे - 411 001
ई-मेल - sedirdpn@gmail.com
दूरध्वनी क्र.1 : 020-26360912,
दूरध्वनी क्र.2 : 020-26360991.
श्री. ओ.भ. शेंडूरे,
कार्यकारी अभियंता व उपसंचालक,
पाटबंधारे संशोधन व विकास संचालनालय
8, मोलेदिना पथ, पुणे - 411 001